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1800-102-2727राम का मन प्रश्न और आशंकाओं से भरा था। वे संदेह में थे और जल्द कुटिया पहुंचना चाहते थे। तभी उन्हें पगडंगी से लक्ष्मण आते दिखे और उन्हें उनपर क्रोध आने लगा। लक्ष्मण ने उन्हें बताया कि सीता ने उन्हें आने पर विवश कर दिया था इसलिए उन्हें कुटिया छोड़ कर आना पड़ा। राम ने लक्ष्मण को बोला कि उनका कुटिया से आना उन्हें उचित नहीं लगा। दोनों शीघ्र कुटिया की जाने लगे। कुटिया दिखाई देने पर राम सीता को पुकारने लगे पर कोई जवाब नहीं आया।उन्होंने सीता को हर जगह ढूंढा हर किसी से उनके बारे में पूछा और अंत में हार कर पेड़ के नीचे बैठ गए। लक्ष्मण ने राम को धैर्य रखने को कहा और आश्वासित किया की वे सीता को साथ ढूंढ लेंगे। एक हिरण का झुंड उनके निकट आया। राम ने उनसे पूछा— सीता कहां है? हिरणों ने आसमान में दक्षिण दिशा में देखा और भाग गए । राम इशारा समझ कर सीता की खोज में निकल गए। मार्ग में उन्हें टूटे रथ के टुकड़े मिले। कुछ दूर पर जटायु लहूलुहान गिरे थे। उन्होंने राम को सब बताते हुए प्राण त्याग दिए। राम ने जटायु की अंतिम क्रिया की और आगे बढ़े। मार्ग में उनपर कबंध राक्षस ने हमला किया पर राम ने तलवार से वार कर उसके हाथ काट दिए।
उसने राम के बारे में जान कर राम से उसका अंतिम संस्कार करने की प्रार्थना करी। कबंध ने उन दोनों को ऋष्यमूक पर्वत पर वनरराज सुग्रीव से मदद लेने को कहा। पंपा सरोवर पर ऋषि मतंग की शिष्य शबरी से मिलने का बोलते हुए उसने अपने प्राण त्याग दिए। राम और लक्ष्मण कबंध का अंतिम संस्कार करने के बाद शबरी से मिले। शबरी ने भी राम को आश्वस्त करते हुए सुग्रीव से सहायता के लिए बोला और बताया कि उनके पास विलक्षण शक्ति वाले बंदर है। अगले दिन राम व लक्ष्मण ऋष्यमूक पर्वत चले गए।
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