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1800-102-2727हिरण का पीछे करते करते राम कुटिया से बहुत दूर आ गए थे। उसे जीवित पकड़ने का विचार छोड़ उन्होंने उसे बाढ़ मार दिया। बाढ़ लगते ही मारीच अपने असल रूप में आकर — राम की आवाज में हे सीता ! हे लक्ष्मण! बोला और अपने प्राण त्याग दिए। राम षड्यंत्र समझ गए। कुटिया में सीता और लक्ष्मण ने भी आवाज़ सुनी। लक्ष्मण भी ये चाल समझ गए और चौकसी बढ़ा दी, परंतु सीता विचलित हो गई। लक्ष्मण के समझाने पर वे क्रोध से बोली कि तुम्हारा मन साफ़ नहीं है। सीता की बातों से दुःखी होकर लक्ष्मण ने उन्हें समझाया की यह राक्षसों का छल है। सीता ने उन्हें राम को लेकर आने को कहा। उनके जाते ही रावण साधु का भेष में भिक्षा माँगने आया। सीता के लक्षमण रेखा पार करते ही उन्हें खींच कर रथ में बैठा लिया और लंका की ओर जाने लगा। सीता मार्ग में आए पशुओं, पक्षियों, पर्वत को कहती जा रही थी के वे राम को बता दे रावण ने उनका अपहरण किया है।
जटायु ने यह सुन रावण और उसके रथ पर हमला किया। क्रोध में रावण ने जटायु के पंख काट दिए और सीता को दक्षिण दिशा में लेकर उड़ गया। सीता ने अपने आभूषण उतार कर मार्ग में फेंक दिए जिससे राम को मार्ग का पता चले। रावण सीता को लंका ले आया और अशोक वाटिका में राक्षसियों की निगरानी में बंदी बना दिया। रावण ने सीता को उससे विवाह करने का एक वर्ष का समय दिया। सीता राम का नाम जपते रहती , और रावण को याद दिलाती रहती की राम के हाथों उसका अंत निश्चित है। राम की प्रशंसा सुन रावण ने चिंतित हो कर अपने आठ शक्तिशाली राक्षस पंचवटी भेज दिए।
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