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1800-102-2727पुत्रों के विवाह पश्चात राजा दशरथ के मन में राम के राज्याभिषेक कर युवराज पद देने की इच्छा प्रकट हुई। राम राज–काज की ज़िम्मेदारी भी अच्छे से निभा रहे थे। राजा दशरथ ने राम के राज्याभिषेक की घोषणा कर, उत्सव की तैयारियाँ शुरू कर दीं । राज्याभिषेक की तैयारी देख दासी मंथरा ने कैकई को जाकर सूचना दी और उसके कान भरे कि उसके सुखों का अंत होने वाला है। राजा भरत और शत्रुघ्न को ननिहाल भेजकर राम का राजतिलक कर रहे हैं। कैकई ने इससे प्रसन्न हो कर मंथरा को अपना हार दिया। मंथरा ने कहा कि अगर राम राजा बने तो वो भरत को देश निकाला दे देंगे। कोई ऐसा उपाय करो कि गद्दी भरत को मिल जाए और राम को जंगल भेज दिया जाए। कैकई मंथरा के इस द्वेष भाव में आ गई और उससे उपाय पूछने लगी। मंथरा ने उसे उसके दो वरदान याद दिलाए जो वो राजा से मांग सकती थीं।
एक वरदान में उसने भरत के लिए राज गद्दी और दूसरे में राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांगने को कहा। कैकई मैले कपड़े धारण कर कोपभवन में चली गईं। इसे देख महाराज परेशान हुए और उनके दुख का कारण पूछने आए। अपने वचन पूरे करने का आश्वासन ले कर कैकई ने भरत का राज तिलक और राम का 14 वर्ष का वनवास माँगा। राजा दशरथ हैरान हो गए। कैकई ने कहा की यदि वे उसका वचन पूरा नहीं करेंगे तो वो विष पीकर प्राण त्याग देंगी। राजा ज़मीन पर मूर्छित हो गए। होश आने पर कैकई की बातों को अनर्थ बताया। रात्रि इसी तरह कैकई को समझाते, गिड़गिड़ाते बीत गई।
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