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1800-102-2727विभीषण राम को कुछ दिन लंका में रुकने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने राम को कहा की इसमें उनका स्वार्थ भी है और उन्होंने अब तक लंका नगरी नहीं देखी है। राम ने अभी लंका में कदम नहीं रखा था। सीता से मिलने हनुमान, अंगद और लक्ष्मण भी गए थे। राम ने उन्हें बताया की उनके वनवास के चौदह वर्ष पूर्ण हो गए हैं। उन्हें अयोध्या लौटना है। यदि विलंब हुआ तो भरत ने प्राण त्याग देने की प्रतिज्ञा ली है। इस प्रस्ताव के अस्वीकार होने पर उन्होंने राम को उनके राज्याभिषेक में उपस्थित रहने की अनुमति माँगी। राम ने उनका आग्रह स्वीकार किया। सुग्रीव और हनुमान भी आगे आए। विभीषण उन्हें ले जाने के लिए पुष्पक विमान लाए और उत्तर की और चल पड़े। सुग्रीव की रानियाँ भी विमान में सवार हुई। राम सीता के साथ बैठे। राम ने सीता को गोदावरी नदी दिखाई। वे गंगा–यमुना के संगम पर ऋषि भारद्वाज के आश्रम पर उतरे।
हनुमान को पूर्व सूचित करने अयोध्या भेजा। वे भरत के हाल जानना चाहते थे। नंदीग्राम पहुंचकर उन्होंने भरत को सूचना दी जिसे सुनकर उनकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था।। हनुमान राम के पास लौट आए। भरत से सूचना पाकर अयोध्या में उत्सव की तैयारी होने लगी। शत्रुघ्न राज्याभिषेक की तैयारी में लग गए। रानियाँ नंदीग्राम गई। राम का विमान नंदीग्राम में रुका। उन्होंने भरत को गले लगाया और भरत ने उन्हें उनके खड़ाऊँ पहनाई। खुशी से सबकी आँखें नाम थी। राम– लक्ष्मण ने तपस्वी वस्त्र उतार राजसी वस्त्र पहने। जय जयकार के साथ उन्होंने अयोध्या में प्रवेश किया। गुरु वशिष्ठ ने अगले दिन राम का राजतिलक किया और सीता को रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठाया। माताओं ने उनकी आरती उतारी। सीता ने अपने गले का हार हनुमान को दिया। राम ने लंबे समय तक राज किया एवं हनुमान उनकी सेवा में ही रहे।
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