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1800-102-2727लंका पर आक्रमण के लिए सेना का नेतृत्व नल कर रहे थे। सेनापति सुग्रीव थे एवम् जामवंत और हनुमान सबसे पीछे थे। राम की शक्तियों को लेकर लंकावासियों में डर था। विभीषण ने रावण को समझाने का प्रयत्न किया पर रावण ने उस पर क्रोधित हो कर उसे अपना शत्रु बोलकर उसे नगर से निकल जाने को कहा। उस रात विभीषण राम के पास चले गए। अंगद और सुग्रीव उन्हें शंका की दृष्टि से देख रहे थे परंतु राम ने उनका सत्कार किया। विभीषण ने उन्हें लंका, रावण, और सेना की जानकारियां दी। राम ने उन्हें लंका की राजगद्दी देने का आश्वासन दिया। राम की सेना के सामने समुद्र पार करने की बड़ी चुनौती थी। समुद्र देव के सुझाव पर नल ने पांच दिन में पुल बना दिया। लंका के चार द्वार के लिए राम ने सेना को चार भाग में बटा। सूर्योदय होने पर राम ने अंगद को दूत बना कर आखिरी बार सुलह देने भेजा परंतु रावण नहीं माना। युद्ध प्रारब्ध हुआ दोनों सेना के अनेकों योद्धा मारे गए। मेघनाथ के बाण से राम और लक्ष्मण मूर्छित हो गए।
विभीषण ने राम और लक्ष्मण का उपचार किया। इसके बाद रावण घबरा कर स्वयं मैदान में आया, राम ने अपने बाणों से उसका मुकुट गिरा दिया। लज्जित हो उसने कुंभकरण को जगाया। राम और लक्ष्मण ने उसका भी अंत कर दिया। मेघनाथ लक्ष्मण से लड़ने आया और अपने विभीषण का विश्वासघात उससे से देखा नहीं गया , उसने उस पर निशाना लगाया किंतु निशाना लक्ष्मण ने खुद ले लिया और मूर्छित हो गए। राम यह सन्देश सुनकर क्रोध से लाल हो गाए। वैध शुषेण को बुलाया, उनकी सलाह पर हनुमान से संजीवनी बूटी लाने को कहा जिससे उनका घाव भर जाए। इसके पश्चात के युद्ध में मेघनाथ, लक्ष्मण के हाथों मारा गया। राम और रावण के बीच भयानक युद्ध हुआ। रावण के बाण से राम के रथ का ध्वज कटा और राम का बाण रावण के मस्तिष्क में लगा। परन्तु कुछ समय बाद कटा मस्तिष्क फिर से आ गया। विभीषण के सुझाव पे राम ने अग्नि बाण से रावण के नाभी का अमृत सूखा दिया और रावण पृथ्वी पर गिर गया। विभीषण दुःखी होकर अपने भाई के शव को देख रहे थे। राम ने उन्हें समझाया और लक्ष्मण ने उनके राज्याभिषेक की तैयारियां की। अब विभीषण लंका के राजा थे उन्होंने पूरे आदर सत्कार के साथ माता सीता को राम को सौंप दिया।
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