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1800-102-2727हनुमान ने उठकर छलांग लगाई और महेंद्र पर्वत पर जाकर खड़े हो गए। पूर्व दिशा में अपने पिता को प्रणाम कर उन्होंने छलांग लगाई और आकाश में वायु की गति से उड़ने लगे। राक्षसी सुरसा और सिहिका उनके रास्ते में आई किन्तु उन्हें परास्त कर वे आगे निकल गए। उन्हें दूर सोने की लंका दिखाई दी। समुद्र किनारे उतर कर शाम को वो भीतर गए। उन्होंने हर जगह देखा परन्तु सीता का कहीं पता नहीं था। अंततः उनका ध्यान रावण का स्वर्ण जड़ित रथ और उससे लगी वाटिका पर गया। वहाँ अशोक के ऊंचे पेड़ थे। रात को उन्होंने देखा राक्षसियों के बीच एक स्त्री बैठी है। वे सीता को पहचान गए। तभी वहाँ रावण आया और सीता को अपनी रानी बनने के लिए बहलाने लगा। सीता ने उसे कहा की उसका अंत निश्चित है। रावण के जाने के बाद राक्षसियों ने उसे डराया। उनमें त्रिजटा नाम की एक राक्षसी ने उन्हें बताया की उसने लंका के समुद्र में डूबे जाने का स्वप्न देखा। कुछ समय बाद सीता अकेली थी। हनुमान ने पेड़ पर राम कथा प्रारंभ की।
सीता ने ऊपर देख कर पूछा की तुम कौन हो? हनुमान ने सीता को प्रणाम कर भगवान राम की अंगूठी दी और स्वयं को राम दास बताया। सीता ने अपना आभूषण राम को देने के लिए कहा, जाते हुए हनुमान ने अशोक वाटिका उजाड़ दी। रावण के पुत्र मेघनाथ ने हनुमान को बांधकर दरबार में लाया और क्रोध में रावण ने हनुमान की पूंछ में आग लगा देने का और नगर में घुमाने का आदेश दिया। हनुमान ने बंधन तोड़कर सारे भवनों में आग लगा दी। सीता को प्रणाम कर वे उत्तर चल पड़े। सुग्रीव वानरों के संग राम के पास लौट आये। हनुमान ने माता सीता का आभूषण उन्हें दिया तो राम की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। राम ने हनुमान से कई प्रश्न किए। हनुमान ने उन्हें सारा वर्णन किया और बताया कि माता सीता उनकी प्रतीक्षा में हैं। भाव विलीन होकर उन्होंने हनुमान को गले लगा लिया। लंका पर आक्रमण करने का लक्ष्य स्पष्ट था। सुग्रीव ने लक्ष्मण के साथ बैठ कर योजना बनाई। हनुमान, अंगद, जामवंत, नल और नील को आगे रखा गया। समुद्र पार करने पर देर रात विचार चलता रहा।
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