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1800-102-2727अवध में सरयू नदी के किनारे एक संपन्न नगर था – अयोध्या। यहाँ के लोग समृद्ध और खुशहाल थे। अयोध्या कौशल राज्य की राजधानी थी। यहाँ के राजा महाराज अज के पुत्र एवं महाराज रघु के उत्तराधिकारी – राजा दशरथ थे। रघुकुल की नीति का प्रभाव नगर और नगर वासियों में हर जगह था। राजा को किसी बात या वस्तु की कमी नहीं थी, लेकिन संतान न होने का दुःख था। राजा की तीन रानियाँ थी – कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी। उन्होंने अपनी चिंता के विषय में वशिष्ठ मुनि से चर्चा की। महर्षि वशिष्ठ ने राजा को पुत्रेष्टि यज्ञ की सलाह दी।
यज्ञ समाप्ति के बाद अग्नि देवता ने राजा को आशीर्वाद दिया। तीनों रानियाँ पुत्रवती हुई। रानी कौशल्या ने चैत्र माह की नवमी के दिन राम को जन्म दिया , रानी सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया तथा रानी कैकेयी ने भरत को जन्म दिया । राजकुमार सुंदर थे तथा उनमें आपस में बहुत प्रेम था । उन्होंने दक्ष गुरुजनों से विद्या प्राप्त की। एक दिन महर्षि विश्वामित्र वहाँ पधारे । महाराज दशरथ ने उनसे आने का कारण पूछा। उन्होंने राजा दशरथ से कहा कि वे सिद्धि के लिए एक यज्ञ कर रहे हैं। उस यज्ञ में राक्षस आकर बाधा डाल रहे हैं और उन्हें सिर्फ आपका पुत्र राम मार सकता है, इसलिए यज्ञ पूरा होने तक राम को मुझे दे दें। दशरथ ने दुःखी मन से बात स्वीकार कर ली परंतु राम के साथ लक्ष्मण को भी ले जाने का आग्रह किया। दशरथ ने राम और लक्ष्मण को दरबार में बुलाकर अपने निर्णय की सूचना दी। दोनों राजकुमार बिना विलंब के महर्षि विश्वामित्र के साथ अपने धनुष संभाले, पीठ पर तूणीर और कमर पर तलवार लटकाए चल पड़े।
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