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1800-102-2727इस पद में मीराबाई अपने प्रिय भगवान श्रीकृष्ण से विनती करते हुए कहती हैं कि, हे प्रभु! अब आप ही अपने भक्तों की पीड़ा हरें। जिस तरह आपने अपमानित द्रौपदी की लाज उसे चीर प्रदान करके बचाई थी, जब दुःशासन ने उसे निर्वस्त्र करने का प्रयास किया था। अपने प्रिय भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए नरसिंह रूप धारण किया था। इन उदाहरणों को देकर दासी मीरा कहती हैं कि हे गिरिधर लाल! आप मेरी पीड़ा भी दूर कर मुझे छुटकारा दीजिये।
इन पदों में मीरा भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहती हैं कि हे श्याम ! आप मुझे अपनी दासी बना लीजिये। आपकी दासी बनकर मैं आपके लिए बाग-बगीचे लगाऊँगी, जिसमें आप विहार कर सकें। इसी बहाने मैं रोज आपके दर्शन कर सकूँगी, मैं वृंदावन के कुंजों और गलियों में कृष्ण की लीला के गान करूंगी। इससे उन्हें कृष्ण के नाम स्मरण का अवसर प्राप्त हो जाएगा तथा भावपूर्ण भक्ति की जागीर भी प्राप्त होगी। इस प्रकार दर्शन, स्मरण और भाव-भक्ति नामक तीनों बातें उनके जीवन में रच-बस जाएंगी ।
अगली पंक्तियों में मीरा श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि मेरे प्रभु कृष्ण के शीश पर मोर पंखों का बना हुआ मुकुट सुशोभित है। तन पर पीले वस्त्र सुशोभित हैं, गले में वन फूलों की माला शोभामान है, वे वृन्दावन में गायें चराते हैं और मनमोहक मुरली बजाते हैं। वृन्दावन में मेरे प्रभु के बहुत ऊँचे-ऊँचे महल हैं वे उस महल के आंगन के बीच में सुंदर फूलों से सजी फुलवारी बनाना चाहती हैं। मीरा भगवान कृष्ण से निवेदन करते हुए कहती हैं कि हे गिरिधर नागर! मेरा मन आप से मिलने के लिए बहुत व्याकुल है इसलिए दर्शन देने अवश्य आइएगा।
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