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NCERT Solutions for Class 10 हिंदी क्षितिज काव्य खंड पाठ 8: कन्यादान

प्रस्तुत कविता में कवि ने माँ की उस पीड़ा को व्यक्त किया है जब वह अपनी बेटी को विदा करती है। उसके मन को लगता है जैसे उसने अपने जीवन भर की पूंजी गंवा दी। माँ के हृदय में आशंका बनी रहती है कि कहीं ससुराल में उसे कष्ट तो नहीं होगा क्योंकि अभी वह भोली है। विवाह के बाद वह केवल सुखी जीवन की कल्पना कर सकती है किंतु जिसने कभी दुख देखा नहीं है, वह भला दुख का सामना कैसे करेगी? कवि कहते हैं कि सुख और सौभाग्य को वह पढ़ सकती है परंतु अनचाहे दुखों को वह पढ़ और समझ नहीं सकती। माँ अपनी बेटी को सीख देते हुए कहती है कि प्रतिबिम्ब देखकर अपने रूप-सौंदर्य पर मत रीझना, यह स्थाई नहीं है। माँ दूसरी सीख देते हुए कहती है कि आग का उपयोग खाना बनाने के लिए होता है, इसका उपयोग जलने-जलाने के लिए मत करना। यह सीख उन मानसिकता वाले लोगों पर कटाक्ष है जो दहेज के लालच में अपनी दुल्हन को जला देते हैं। तीसरी सीख देते हुए माँ कहती है कि आभूषणों को ज्यादा महत्व मत देना, यह स्त्री जीवन के बंधन हैं इनसे ज्यादा लगाव अच्छा नहीं है। माँ कहती है कि लड़की होने में कोई बुराई नहीं है परंतु लड़की जैसी कमजोर और असहाय मत दिखना। जरूरत पड़ने पर कोमलता, लज्जा आदि को परे हटाकर अत्याचार के प्रति आवाज़ उठाना।

कवि ऋतुराज का जन्म राजस्थान के भरतपुर जिले में सन 1940 में हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से अंग्रेजी में एम. ए. की उपाधि ग्रहण की और लगभग चालीस वर्षों तक अंग्रेजी-अध्ययन किया। ऋतुराज के अब तक के प्रकाशित काव्य-संग्रहों में ‘पुल पानी में’, ‘एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘सूरत निरत’ तथा ‘लीला अरविंद’ प्रमुख हैं। इन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें सोमदत्त, परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान तथा बिहारी पुरस्कार शामिल हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में यथार्थ से जुड़े सामाजिक शोषण एवं विडंबनाओं को स्थान दिया है इसी वजह से उनकी काव्य-भाषा लोक जीवन से जुड़ी हुई प्रतीत होती है।

 

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