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1800-102-2727सवैये में कवि देव ने श्री कृष्ण के राजसी रूप का वर्णन किया है। कवि का कहना है कि कृष्ण के पैरों की पायल मधुर धुन सुना रही हैं। कृष्ण ने कमर में करधनी पहनी है। उनके साँवले शरीर पर पीला वस्त्र लिपटा हुआ है और उनके गले में फूलों की माला बहुत सुंदर लग रही है तथा उनके सिर पर मुकुट सजा हुआ है। श्रीकृष्ण के रूप को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे वे समस्त जगत को अपने ज्ञान की रोशनी से उज्जवल कर रहे हैं।
प्रथम कविता में बसंत ऋतु की सुंदरता का वर्णन किया गया है, उसे कवि ने एक नन्हे बालक की संज्ञा दी है। बसंत के लिए किसी पेड़ की डाल का पालना बना हुआ है और उस पालने पर नई पत्तियों का बिस्तर लगा हुआ है। बसंत ने फूलों से बने हुए कपड़े पहने हैं, जिससे उसकी शोभा और भी ज्यादा बढ़ गई है, पवन के झोंके उसे झूला झुला रहे हैं।
दूसरी कविता में कवि ने चाँदनी रात की सुंदरता का बखान किया है। चाँदनी का तेज ऐसे बिखर रहा है, जैसे किसी मणि के प्रकाश से धरती जगमगा रही हो इस प्रकाश में दूर-दूर तक सब कुछ साफ-साफ दिख रहा है। पूरा आसमान किसी दर्पण की तरह लग रहा है जिसमें चारों तरफ रोशनी फैली हुई है।
हिंदी की ब्रजभाषा काव्य के अंतर्गत देव को महाकवि का गौरव प्राप्त है। इनका पूरा नाम देवदत्त था तथा इनका जन्म इटावा (उ.प्र.) में हुआ था। इनके काव्य ग्रंथों की संख्या 52 से 72 तक मानी जाती है। उनमें से रसविलास, भाव विलास, भवानी विलास और काव्य रसायन प्रमुख रचनाएँ मानी जाती हैं। देव ने इसके अलावा प्राकृतिक सौंदर्य को भी अपनी कविताओं में प्रमुखता से शामिल किया। शब्दों की आवृत्ति का प्रयोग कर उन्होंने सुन्दर ध्वनि-चित्र भी प्रस्तुत किये हैं। अपनी रचनाओं में वे अलंकारों का भरपूर प्रयोग करते थे।
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