Call Now
1800-102-2727श्री राम, शिव जी का धनुष उठाकर उसे तोड़ देते हैं, तो सारे संसार में इस बात की चर्चा आग की तरह फैल जाती है। जब यह बात परशुराम जी के कानों तक जाती है और उन्हें पता चलता है कि उनके गुरुदेव शिव जी का धनुष किसी ने तोड़ दिया है, वो अपने आपे से बाहर हो जाते हैं। वो धनुष तोड़ने वाले व्यक्ति का वध करने के लिए सीताजी के स्वयंवर वली सभा में आ जाते हैं। धनुष तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा कहकर श्री राम ने परशुराम का क्रोध शांत करने एवं उन्हें सच्चाई से अवगत कराने का प्रयास किया। श्री राम के मन में बड़ों के प्रति श्रद्धा एवं आदर भाव था, उनके शीतल जल के समान वचन परशुराम की क्रोधाग्नि को शांत कर देते हैं। वहीं लक्ष्मण के वचनों से परशुराम अत्यंत क्रोधी हो जाते हैं, वह क्षत्रियों का विनाश करने वाले हैं उन्होंने अपनी भुजाओं के बल पर पृथ्वी को अनेक बार जीतकर ब्राह्मणों को दे दिया। लक्ष्मण का चरित्र श्रीराम के चरित्र से बिल्कुल विपरीत था, उनका स्वभाव उग्र एवं उद्दंड था। वे परशुराम को उत्तेजित एवं क्रोधित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते थे, उनकी व्यंग्यात्मकता से परशुराम आहत हो उठते और उन्हें मारने के लिए उद्यत हो जाते थे।
गोस्वामी तुलसीदास के जन्म एवं स्थान के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है परन्तु अधिकांश विद्वान इनका जन्म 1532 में सोरों में मानते हैं। इनके पिता एवं माता का नाम आत्मा राम दुबे एवं हुलसी था। इनका बचपन काफी कष्टपूर्ण था, ये बचपन में ही ये अपने माता-पिता से बिछड़ गए थे। तुलसीदास जी की गुरु नरहरि दास थे इनका विवाह रत्नावली से हुआ था, जिन्होंने इनका जीवन राम-भक्ति की ओर मोड़ने का सफल प्रयास किया। इनके ग्रन्थ रामचरित मानस में इन्होंने समस्त पारिवारिक संबंधों, राजनीति, धर्म, सामाजिक व्यवस्था का बड़ा ही सुन्दर उल्लेख किया। रामचरित मानस के अतिरिक्त इनके अन्य ग्रन्थ विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, गीतावली इत्यादि हैं। तुलसीदास जी की काव्य भाषा अवधी है, अवधी के अतिरिक्त ब्रज भाषा का प्रयोग भी इनके साहित्य में प्रचुरता में मिलता है। ये प्रभु श्री राम के परम उपासक थे। सन 1623 में इन्होंने काशी में देह त्याग दिया था।
Talk to our expert