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1800-102-2727'लखनवी अंदाज' पाठ में लेखक बताते हैं कि उन्हें कहीं पास में ही जाना था इसलिए उन्होंने सेकंड क्लास का टिकट लिया। वह आराम से खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देखते हुए किसी नई कहानी के बारे में विचार करने वाले थे। पैसेंजर ट्रेन खुलने को थी, लेखक दौड़कर एक डिब्बे में चढ़े, परंतु अनुमान के विपरीत उन्हें डिब्बा खाली नहीं मिला। डिब्बे में पहले से ही लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सज्जन पालथी मारे बैठे थे। उनके सामने दो ताजे चिकने खीरे तौलिये पर रखे थे। लेखक का अचानक चढ़ जाना उस सज्जन को अच्छा नहीं लगा, नवाब साहब खिड़की से बाहर देख रहे थे परंतु लगातार कनखियों से लेखक की ओर भी देख रहे थे। अचानक ही नवाब साहब ने लेखक को संबोधित करते हुए खीरे का लुत्फ़ उठाने को कहा परंतु लेखक ने शुक्रिया करते हुए मना कर दिया।
नवाब ने बहुत ढंग से खीरे धोकर छिले, काटे और उसमे जीरा, नमक-मिर्च लगाकर तौलिये पर सजाकर रख दिया। लेखक मन ही मन सोचा कि मियाँ रईस बनते हैं लेकिन लोगों की नजर से बच सकने के ख्याल में अपनी असलियत पर उतर आए हैं। नवाब साहब खीरे की एक फाँक उठाकर होठों तक ले गए, उसे सूंघा, पलकें मूँदे स्वाद का आनंद लिया, मुंह में आए पानी के घूँट को गले से उतारा और फाँक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। इसी प्रकार एक-एक करके फाँक को उठाकर सूंघते और फेंकते गए, लेखक ने सोचा कि खीरा इस्तेमाल करने से क्या पेट भर सकता है तभी नवाब साहब ने डकार ले ली और बोले खीरा होता है लज़ीज पर पेट पर बोझ डाल देता है। यह सुनकर लेखक ने सोचा कि जब खीरे के गंध से पेट भर जाने की डकार आ जाती है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के इच्छा मात्र से नई कहानी बन सकती है।
यशपाल का जन्म सन् 1903 में फिरोजपुर छावनी में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा कांगड़ा में ग्रहण करने के बाद लाहौर के नेशनल कॉलेज से बी.ए. किया। वहाँ इनका परिचय भगत सिंह और सुखदेव से हुआ। स्वाधीनता संग्राम की क्रांतिकारी धारा से जुड़ाव के कारण लेखक जेल भी गए। इनकी मृत्यु सन् 1976 में हुई। इनके प्रमुख कार्यों में कहानी संग्रह और उपन्यास शामिल हैं जैसे ज्ञानदान, तर्क का तूफान, दादा कामरेड और मेरी-तेरी उसकी बात इत्यादि।
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