'मैं क्यों लिखता हूँ' पाठ में लेखक ने अपने लिखने के कारणों के साथ-साथ एक लेखक के प्रेरणा-स्रोतों पर भी प्रकाश डाला है। लेखक के अनुसार लिखे बिना, लिखने के कारणों को नहीं जाना जा सकता।
प्रायः प्रत्येक रचनाकार की आत्मानुभूति ही उसे लेखन कार्य के लिए प्रेरित करती है, किंतु कुछ बाहरी दबाव भी होते हैं। ये बाहरी दबाव भी कई बार रचनाकार को लिखने के लिए बाध्य करते हैं, इन बाहरी दबावों में संपादकों का आग्रह, प्रकाशक का तकाजा तथा आर्थिक आवश्यकता प्रमुख हैं। लेखक का मत है कि वह बाहरी दबावों से कम प्रभावित होते हैं, उन्हें तो उनकी भीतरी विवशता ही लिखने की ओर प्रेरित करती है।
लेखक बताते हैं कि उनके द्वारा लिखी 'हिरोशिमा’ नामक कविता भी ऐसी ही है। एक बार जब वह जापान गए, तो वहाँ हिरोशिमा में उन्होंने देखा कि एक पत्थर बुरी तरह झुलसा हुआ है, और उस पर एक व्यक्ति की लंबी उजली छाया है। विज्ञान का विद्यार्थी होने के कारण उन्हें रेडियोधर्मी प्रभावों की जानकारी थी। उसे देखकर उन्होंने अनुमान लगाया कि जब हिरोशिमा पर अणु बम गिराया गया होगा, तो उस समय ये व्यक्ति इस पत्थर के पास खड़ा रहा होगा। अणु बम के प्रभाव से वह भाप बनकर उड़ गया होगा, किंतु उसकी छाया उस पत्थर पर ही रह गई।
लेखक को उस झुलसे हुए पत्थर ने झकझोर कर रख दिया। वह हिरोशिमा पर गिराए गए अणु बम की भयानकता की कल्पना करके बहुत दुखी हो गए। उस समय उसे ऐसा लगा, मानो वह उस दुखद घटना के समय वहाँ मौजूद रहा हो। इस त्रासदी से उसके भीतर जो व्याकुलता पैदा हुई, उसी का परिणाम उसके द्वारा हिरोशिमा पर लिखी कविता थी। लेखक कहता है कि यह कविता जैसी भी हो, वह उसकी अनुभूति से पैदा हुई थी, यही उसके लिए महत्वपूर्ण था।
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