लेखिका महादेवी वर्मा के परिवार में 200 वर्षों तक कोई लड़की नहीं थी क्योंकि पहले, उनके यहाँ लड़कियों को पैदा होते ही मार देते थे। किंतु लेखिका को यह सब नहीं सहना पड़ा लेखिका ने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू व फारसी पढ़ी तथा हिंदी में उनकी विशेष रूचि थी। उन्हें क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में भर्ती कराया गया जहाँ लेखिका अपनी 2 साल सीनियर सुभद्रा कुमारी चौहान से मिली। सुभद्रा कविता लिखती थी जिसे देखकर महादेवी को भी कविता में रुचि उत्पन्न हुई।
उन दिनों ‘स्त्री दर्पण’ नामक एक पत्रिका में लेखिका और सुभद्रा जी दोनों की कविताएं छपती थी, वह दोनों कवि सम्मेलनों में जाने लगी थी। एक बार लेखिका को इनाम में चांदी का कटोरा मिला, सुभद्रा ने कहा- तुम मुझे इस कटोरे में खीर बना कर खिलाना। किंतु यह कटोरा बाद में महात्मा गांधी के पास चला गया।
जब सुभद्रा जी छात्रावास छोड़ कर चली गईं, तो एक मराठी लड़की जेबुन्निसा उनकी जगह आ गई। वह लेखिका की किताबें ठीक कर देती, डेस्क साफ कर देती, जिससे लेखिका को कविता लिखने का वक्त मिल जाता था। उस समय सांप्रदायिकता नहीं थी। अलग-अलग जगह की लड़कियां अपनी-अपनी बोलियों में बात करती थी लेकिन सब साथ मिलकर हिंदी व उर्दू पढ़ते थे और साथ खाना खाते थे।
लेखिका के घर के पास रहने वाले नवाब साहब से उनके अच्छे संबंध थे, लेखिका बेगम साहिबा को ताई कहकर बुलाती थी। लेखिका के छोटे भाई का नाम ‘मनमोहन’ भी उन्होंने ही रखा था। प्रोफेसर मनमोहन आगे चलकर जम्मू विश्वविद्यालय तथा गोरखपुर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बन गए।
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