यह कविता सुभद्रा कुमारी चौहान ने लिखी है जिसमें उन्होंने रानी के जन्म से लेकर उनके शहीद होने तक की पूरी जीवन गाथा को बताया है। इस कविता में उन्होंने बताया है कि लक्ष्मीबाई अपने पिता की अकेली संतान थीं। उनको बचपन में सभी लोग छबीली कहकर बुलाते थे और उनके बचपन की सहेली भी तलवार और कटारी थी। वे कानपुर के राजा नानासाहेब की मुँहबोली बहन थीं, वे नाना के साथ ही खेलती व उन्हीं के साथ पढ़ती थीं। विवाह की उम्र होने पर उनका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव से हुआ। बड़े ही धूमधाम से उनका विवाह हुआ और झाँसी में उनका भव्य स्वागत हुआ पर काल की गति को कोई नहीं रोक सकता, जल्द ही राजासाहब की मृत्यु हो गयी और रानी छोटी-सी उम्र में ही विधवा हो गयीं। राजा के न होने पर अंग्रेजों का व्यवहार आम लोगो के प्रति दिन-प्रतिदिन बुरा होता जा रहा था। स्वराज्य की स्थापना और अपने देश को गुलामी की जंजीरों से बचाने के लिये रानी ने झाँसी के सिंघासन को खुद ही संभाला। रानी की कोई संतान न थी और राज्य में उत्तराधिकारी के लिये लोगों की चिंता बढ़ती जा रही थीं उसी समय रानी ने एक पुत्र को गोद लिया और उसका नाम दामोदर रखा। रानी को बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी का बहुत शौक़ था और जब अंग्रेजों ने अपने आतंक की सीमा को पार कर दिया तब रानी खुद ही घोड़े पर बैठकर दामोदर को अपनी पीठ पर बाँधे रणभूमि में उतरीं। वे एक वीर सिपाही की तरह अंग्रेजों से आखिरी दम तक लड़ती रहीं और लड़ते हुए ही वे ग्वालियर में स्वर्ग गति को प्राप्त हो गयीं।
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