इस गीत में कवि ने खुद को भारत माता के सैनिक के रूप में अंकित किया है। कवि कहते हैं कि युद्धभूमि में सैनिक शहीद होते हुए अपने दूसरे साथियों से कहते हैं कि हमने अपने जान और तन को देश सेवा में समर्पित कर दिया, हम जा रहे हैं, अब देश की रक्षा करने का भार तुम्हारे हाथों में है। हमारे कटे सिरों यानी शहीद हुए जवानों का हमें ग़म नहीं है, हमारे लिये ये प्रसन्नता की बात है की हमने अपने जीते जी हिमालय का सिर झुकने नहीं दिया यानी दुश्मनों को देश में प्रवेश नहीं करने दिया। हम बलिदान देकर जाकर रहे हैं, अब देश की रक्षा करने का भार तुम्हारे हाथों में है।
कवि एक सैनिक के रूप में कहते हैं कि व्यक्ति को देश के लिए जान देने के मौके कभी-कभी ही मिलते हैं, इसलिए इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। हमारे जाने के बाद इसकी रक्षा की जिम्मेवारी अब आपके हाथों में है।
शहीद होते हुए सैनिक कहते हैं कि बलिदानों का जो सिलसिला चल पड़ा है वह कभी रुक ना पाये, यानी अपने देश की दुश्मनों से रक्षा के लिए सैनिक हमेशा आगे बढ़ते रहें। आज हम मृत्यु को प्राप्त होने वाले हैं इसलिए हमें अपने सिर पर कफन बांध लेना चाहिए।
भारत माता को सीता समान बताते हुए कवि कहते हैं अगर कोई भी हाथ भारत माता का आँचल छूने का दुस्साहस करे उसे तोड़ दो, भारत माता के सम्मान को किसी भी तरह ठेस ना पहुंचे। जिस तरह राम और लक्ष्मण ने सीता की रक्षा के लिए पापी रावण का नाश किया, उसी तरह तुम भी शत्रु को पराजित कर भारत माता को सुरक्षित करो, अब ये वतन की जिम्मेवारी तुम्हारे हाथों में है।
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