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1800-102-2727पहली साखी में कबीर मानसरोवर के जल में आनंद ले रहे हंसों का उदाहरण लेकर बताते हैं कि अगर मनुष्य खुद को ईश्वर की भक्ति में लीन कर लेगा तो वह आसानी से परम मोक्ष का आनंद प्राप्त कर लेगा। दूसरी साखी में कवि कहते हैं कि वह ईश्वर प्रेमी ढूंढते रहे परंतु उन्हें कोई नहीं मिला, ईश्वर प्रेमी सिर्फ उन्हीं को मिलते हैं जो खुद भी सच्चे प्रेमी हों। ईश्वर प्रेमियों की सारी विष रुपी बुराइयां अमृत में परिवर्तित हो जाती हैं। तीसरी साखी में कवि कहते हैं कि अक्सर हाथी को चलता देख कुत्ते भोंकते हैं पर जिस तरह हाथी उनकी परवाह नहीं करता, उसी तरह हमें संसार द्वारा की गयी निंदा की परवाह किए बगैर ज्ञान व भक्ति के मार्ग पर चलते रहना चाहिए।
कवि के अनुसार बिना किसी द्वेष के निष्पक्ष होकर प्रभु की भक्ति करना ही मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है। भेदभाव की भावना से ऊपर हमें भगवान की भक्ति करनी चाहिए व एक-दूसरे से तुलना की भावना त्याग देनी चाहिए। पांचवीं साखी में कवि ने उस समय समाज में चल रहे हिंदू-मुस्लिमों के आपसी मतभेदों का वर्णन किया है। राम और खुदा दोनों ईश्वर के रूप है परंतु मनुष्य इन्हें आपसी भेदभाव के लिए इस्तेमाल करता है, हमें इन भेदभावों को भूलकर ईश्वर की भक्ति में लीन होना चाहिए। छठी साखी में वे कहते हैं जब तक गेहूं बारीक नहीं पिसता, वह खाने योग्य नहीं है। इसी तरह हमें अपने बुरे विचारों को एकता की चक्की में पीसकर सद्भावना के आटे में बदलना होगा जिससे हमें एक-दूसरे के धर्म की बुराई नहीं दिखेगी।
कबीर संदेश देते हैं कि ईश्वर सर्वव्यापी है। मनुष्य ईश्वर की खोज में मंदिर-मस्जिद जाते हैं लेकिन वह भूल जाता है कि ईश्वर उसके भीतर है। अगर आपको ईश्वर को पाना है तो अपने अंतर्मन में झांक कर देखो। कवि कहते हैं जब ज्ञान की आंधी आती है तो सांसारिक भ्रम रूपी बांस का छप्पर, माया रूपी रस्सियां बांधकर नहीं रख पाती, वह ज्ञान की आंधी में तिनके की तरह बिखर जाता है स्वार्थ और लालच रूपी खम्भे भी ज्ञान की आंधी में नहीं टिक पाते। जब ज्ञानरूपी सूर्य उदय होता है तो हमारे अंदर के अंधकार का अंत हो जाता है।
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