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1800-102-2727'एक कुत्ता और एक मैना' की कहानी लेखक 'हज़ारीप्रसाद द्विवेदी' जी द्वारा बड़े ही सुंदर और विनोद भाव में प्रकट की गई है। द्विवेदी जी ने गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर जी को याद करते हुए पशु-पक्षियों के प्रति उनका प्रेम और उनके लगाव को बताया है। लेखक बताते हैं कि छुट्टियों के समय जब वे गुरुदेव से मिलने उनके आश्रम गए थे तब उनके पास एक कुत्ता आ गया था। उस कुत्ते की बुद्धि और गुरुदेव के प्रति उसका अथाह स्नेह देखकर लेखक काफ़ी प्रसन्न होते हैं। पाठ में आगे बढ़ते हुए द्विवेदी जी कुत्ते की वफ़ादारी और समझदारी का वर्णन करते हुए है बताते हैं कि पशु-पक्षी न केवल मानवीय प्रेम प्रकट करते हैं बल्कि उनके भीतर उतनी ही भावनाएं भरी होती हैं जितनी कि हम इंसानों के भीतर।
लेखक गुरुदेव से सम्बन्धित अपना एक और अनुभव पाठ में हमें बताते हैं कि किसी सुबह जब वे गुरुदेव के पास बैठे थे तभी एक लँगड़ी मैना गुरुदेव के पास आ जाती है। गुरुदेव को उस पर दया आती है और करीबन एक हफ़्ते के बेहतर इलाज़ और भरपूर देख-भाल के बाद वह मैना फिर से उड़ने लगती है। इस घटना के बाद ही लेखक को यह एहसास होता है कि मैना में भी करुण भाव होते हैं। उस दिन गुरुदेव के कहने पर जब उन्होंने मैना के मुख की ओर देखा तो उसके मुख से करुण-भाव साफ-साफ़ झलक रहा था।
बाद में लेखक बताते हैं कि उनके घर के छज्जे पर कैसे दो दम्पति मैना अपना घोसला बना रहे थे और एक दिन जब उन्होंने घोंसले की ओर देखा तो दोनों मैना को वहाँ न पाकर उनको काफ़ी दुख हुआ। फ़िर उन्होंने गुरुदेव द्वारा रचित मैना के ऊपर कविता को पढ़ा और उसे पढ़कर उन्हें ये समझ आया कि ये कविता उसी मैना के ऊपर लिखी गयी है जो उस सुबह लंगड़ाते हुए गुरुदेव के पास आई थी।
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