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1800-102-2727प्रस्तुत पाठ में परसाई जी प्रेमचंद का एक चित्र देख रहे हैं जिसमें वे अपनी पत्नी के साथ फोटो खिंचवा रहे हैं। उनके बाएं पांव के जूते में बड़ा छेद है, जिसमें से उंगली बाहर निकल आई है इससे प्रतीत होता है कि वह वास्तविक जीवन में निर्धनता में जी रहे हैं। किंतु उनके चेहरे पर बड़ा विश्वास है वह निर्धन होने से दुखी नहीं हैं। परंपरा के अनुसार फोटो खिंचवाते वक्त मुस्कुराने की कोशिश कर रहे हैं। लेखक प्रेमचंद के फटे जूते पहनने का कारण जानना चाहता है उसके लिए यह बहुत बड़ी बात है। वे टोपी की जगह जूते भी खरीद सकते थे शायद उनकी पत्नी ने फोटो की ज़िद की हो।
लेखक का जूता भी फटा हुआ है उसका तला फट गया है, अंगूठा जमीन से घिस कर लहूलुहान भी हो जाता है, पंजा छिल जाता है मगर उंगली बाहर नहीं देखती, वे इसमें फोटो नहीं खिंचवाएंगे ।
परसाई जी कहते हैं क्या तुम्हारा जूता बनिये के तगादे से बचने के प्रयास में मीलों चक्कर लगाने में घिसा? या तुम किसी चीज को ठोकर मारते रहे हो, तुम उससे बचकर भी तो चल सकते थे। कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी आने-जाने में घिस गया था। परसाई जी तस्वीर में प्रेमचंद की मुस्कान को व्यंग्य समझते हैं वह हम पर हंस रहे हैं जो अपनी उंगली छुपाने के लिए तलवे घिसवा रहा है। हम ठोकरों से बच रहे हैं और उंगली ढ़कने की चिंता में तलवे का नाश कर रहे हैं।
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