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1800-102-2727लेखक 'जाबिर हुसैन' ने यह संस्मरण प्रसिद्ध पक्षी-प्रेमी सालिम अली की याद में लिखा। अपनी अंतिम यात्रा के हुजूम में वह सबसे आगे हैं, भीड़-भाड़ की जिंदगी और तनाव के माहौल से उनका ये आखिरी सफर है। वह उस वन पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं जो जिंदगी का आखिरी गीत गाकर मौत की गोद में जा बसा हो, अब कोई उन्हें वापस नहीं ला सकता। लेखक कहते हैं कि किसी ने श्रीकृष्ण की लीलाओं को नहीं देखा, कब उन्होंने बांसुरी बजाई, कब माखन की मटकी फोड़ी, लेकिन आज भी कोई वृंदावन जाए तो उसे कृष्ण लीला याद आ जाएगी। इसी तरह पक्षियों का नाम सुनकर सालिम अली का नाम जुबां पर आता है।
लगभग 100 साल के सालिम अली का शरीर यात्राओं से कमजोर हो चुका था। कैंसर की बीमारी उनकी मौत का कारण बनी किंतु उनकी आंखों की रोशनी अंतिम क्षण तक तेज थी। उनकी स्कूल की सहपाठी व जीवनसाथी तहमीना ने सदैव उनका सहयोग किया। अनुभवों के मालिक सालिम अली एक दिन केरल की ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवा के झोंकों से बचाने का अनुरोध लेकर प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से मिले। जब सालिम अली ने उन्हें पर्यावरण के संभावित खतरों से अवगत कराया तो उनकी आंखें नम हो गई।
‘फॉल ऑफ ए स्पैरो’ सालिम अली की आत्मकथा है। उनकी आत्मकथा में वह डी एच लॉरेंस के बारे में बताते हैं कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी पत्नी से अनुरोध किया गया कि वे अपने पति के बारे में कुछ लिखे। तब उनकी पत्नी ने कहा कि मेरी छत पर बैठने वाली गौरैया उन्हें मुझसे ज्यादा जानती है। लेखक को भी लगता है कि छत पर बैठने वाली गौरैया उनसे ज्यादा जानकारी रखती है। सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक सागर जैसे थे, लोगों को यकीन नहीं है कि वे मर चुके हैं। उन्हें लगता है वह पक्षियों के सुराग ढूँढने में ही निकले हैं और अभी गले में दूरबीन लटकाए अपने खोजपूर्ण नतीजों के साथ लौट आएंगे।
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