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1800-102-2727ग्राम श्री कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत ने गांव के प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया है। हरे-भरे खेत, बगीचे, गंगा का तट, सभी कवि की इस रचना में जीवित हो उठे हैं। कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने फ़सलों से लदी हुई धरती की सुंदरता का वर्णन बड़े ही रोमांचक ढंग से किया है। इस कविता की रचना कवि ने इस प्रकार की है कि यदि किसी व्यक्ति ने स्वयं ग्रामीण जीवन का दृश्य प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखा है तो भी वह व्यक्ति इस कविता को पढ़ कर ये कल्पना कर सकते है कि वह कैसा प्रतीत होता होगा। खेतों में उगी फसल आपको ऐसी लगेगी, मानो दूर-दूर तक हरे रंग की चादर बिछी हुई हो, उस पर ओस की बूँदें गिरने के बाद जब सूरज की किरणें पड़ती हैं तो वह चाँदी की तरह चमकती है।
नए उगते हुए गेहूं, जौ, सरसों, मटर इत्यादि को देख कर ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति ने श्रृंगार किया है। आम के पेड़ों की डालियाँ सुनहरी और चाँदनी रंग की आम की बौर (कलियों) से लद चुकी हैं। पतझड़ के कारण ढाक और पीपल के पेड़ की पत्तियाँ झड़ रही हैं, इन सब से कोयल मतवाली होकर मधुर संगीत सुना रही है। पूरे वातावरण में कटहल की महक को महसूस किया जा सकता है और आधे पके-आधे कच्चे जामुन तो देखते ही बनते हैं। झरबेरी बेरों से लद चुकी है, खेतों में कई तरह के फल एवं सब्ज़ियाँ उग चुकी हैं, जैसे आड़ू, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन, मूली इत्यादि। गंगा के किनारे का दृश्य भी इतना ही मनमोहक है, जल-थल में रहने वाले जीव अपने-अपने कार्य में लगे हुए हैं। जैसे कि बगुला नदी के किनारे मछलियाँ पकड़ते हुए खुद को सँवार रहा है। इस तरह कवि अपनी इस कविता के माध्यम से हमें गांव के अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य के बारे में बता रहे हैं।
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