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1800-102-2727'किस तरह आखिर मैं हिंदी में आया' पाठ के लेखक शमशेर बहादुर सिंह हैं। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने अपने हिंदी लेखन विद्या में आने का वाक्या बताया है। लेखक कुछ मनमुटाव के चलते अपने घर से बस पकड़कर दिल्ली आ जाते हैं। कुछ करने की ठानकर वे पेंटिंग सीखने का निर्णय लेते हैं, जिसके बाद उन्हें 'उकील आर्ट स्कूल' में बिना फीस लिए ही प्रवेश मिल जाता है।
लेखक वहीं किराए से एक कमरा ले लेते हैं और कनॉट प्लेस पेंटिंग सीखने जाया करते हैं। लेखक के पास आजीविका का कोई खास साधन नहीं था इसलिए उनके बड़े भाई तेज बहादुर कभी-कभार उन्हें कुछ पैसे भेज दिया करते थे। वे खुद भी कभी साइन बोर्ड पेंट करके कुछ पैसे कमा लिया करते थे। लेखक चित्रकारी के साथ-साथ उर्दू गज़ल, कविताएं और शेर भी लिख लिया करते थे पर उन्हें अपनी इस कला पर ज़रा भी गुमान न था। लेखक की पत्नी का टी.बी के चलते देहांत हो जाता है, जिसके बाद लेखक अकेले और उदास रहने लगे। वे अपना अधिकतर समय कविताएं लिखने और पेंटिंग करने में बिताते थे।
कुछ समय बाद लेखक अपने ससुराल देहरादून चले गए थे। वहाँ उन्होंने कंपाउंडर का काम सीखा और वहीं उन्होंने अपनी लिखी हुई कृति बच्चन जी को भेजी थी। लेखक बताते हैं कि इसी बीच बच्चन जी का भी देहरादून आना हुआ और वे बृजमोहन गुप्त के यहाँ ठहरे थे। बच्चन जी और लेखक जब मुलाकात हुई तो इस भेंट से दोनों के बीच एक व्यावहारिक रिश्ता बन गया। बच्चन जी की पत्नी का भी देहांत हो गया था, इसलिए वे लेखक की मनोस्थिति समझते थे। बच्चन जी ने उन्हें इलाहाबाद आने को कहा और एम.ए में प्रवेश दिलाया। लेखक एम.ए फाइनल ईयर की परीक्षा न दे सके, परन्तु लेखक ने अपने लेखन कार्य को जारी रखा। उनके द्वारा लिखित सरस्वती पत्रिका में छपी कविता ने महाकवी निराला जी का ध्यान अपनी ओर खींचा, और इस तरह लेखक ने कलम की बाँह यूँ थामीं कि फिर अंत तक नहीं छोड़ी।
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