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1800-102-2727इस पाठ को लेखिका ने अपनी आत्मकथा की तरह लिखा है, जिसमे उन्होंने बताया है कि किस तरह पहले के समय के लोगो में और आज के जमाने के लोगो में काफी अंतर आ गया है ,अब यह अंतर उनके पहनावे ,बोलचाल, दिनचर्या आदि चीज़ों की वजह से ही आया है। इस पाठ में लेखिका अपने बचपन के दिनों को याद करती हुई लिखती है कि वह बचपन में बहुत सुंदर और खूबसूरत फ़्रॉक पहना करती थीं। कुछ फ़्रॉक के रंग ,रूप तो आज भी उन्हें याद हैं। जैसे उनकी ग्रे ,नीली और भी कई रंग-बिरंगी फ्रॉकें उन्हें याद हैं। वह स्कूल जूते व स्टॉकिंग पहनकर जाती थीं और हर रविवार को खुद ही अपने जूतों पर पॉलिश भी करती थीं। आज भी वे अपने जूतों को पॉलिश कर ही लेती है, पर एक महत्वपूर्ण चीज़ जो बिल्कुल बदल गयी है वो यह है कि लेखिका अब फ़्रॉक नही पहनती हैं। अब वे सलवार सूट पहनती हैं, वे आगे कहती हैं कि समय के साथ तकनीकी विकास भी काफी बढ़ गया है। जहाँ एक समय मोहल्ले के 10 लोगो के घर में एक ग्रामोफोन भी नही होता था वही अब हर किसी के घर में टीवी और टेलीफोन जरूर देखने को मिल जाता है। जब लेखिका छोटी थी तब लड़कियों का चश्मा पहनना समाज मे अच्छा नही माना जाता था और लेखिका की आँखों की रोशनी कमजोर थी जिसके कारण उन्हें चश्मा लगाना पड़ा, लेखिका के भाई अक्सर ही उन्हें यह कहकर परेशान करते थे कि चश्मा लगाकर उनकी शक्ल बन्दर की तरह लगती है। लेखिका को उस समय ये सब सुनकर बहुत बुरा लगता था जबकि उनके डॉक्टर ने उनसे कहा कि उन्हें यह चश्मा बस थोड़े दिनों के लिये ही लगाना है बाद में यह हट जाएगा पर सच्चाई यह रही है कि लेखिका आज भी इतने सालों बाद चश्मे का प्रयोग करती हैं।
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