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1800-102-2727कोपभवन में जो हुआ उसकी जानकारी किसी को नहीं थी। राजा दशरथ ने कैकई को समझने का प्रयत्न किया पर वो अपनी ज़िद पर बनी रहीं। राम के राज्याभिषेक की तैयारी हो चुकी थी। महाराज के अब तक ना आने पर महर्षि वशिष्ठ ने सुमंत्र को राजमहल भेजा। अंदर जाकर देखा तो महाराज पलंग पर निढाल और बीमार पड़े है। कैकई ने उन्हें कहा कि महाराज राम से कुछ बात करना चाहते हैं,आप राम को ले आयें। कुछ समय बाद राम और लक्ष्मण वहाँ पहुंचे। उन्हें देख राजा मूर्छित हो जाते और होश आने पर भी कुछ नहीं बोले। राम ने कैकई से कहा माते आप ही बतायें क्या हुआ है। कैकई ने महाराज से अपने दो वरदान के बारे में बताया। राम ने सरल भाव से सब सुना और अपने पिता के वचन को पूर्ण करने के लिए तैयार हो गए। राम कैकई महल से निकल कर अपनी माँ और उसके बाद सीता के पास जाते हैं। उन्हें अपने 14 वर्ष के वनवास के का निर्णय बताते हैं।
कौशल्या उन्हें वन जाने की अनुमति दे देती हैं। सीता ने राम के साथ जाने का प्रस्ताव रखा। लक्ष्मण भी जाने को तैयार हुए। तीनों पिता से विदा लेने आए। कैकई ने तीनों को वनवासी के वस्त्र दिए। राम, सीता और लक्ष्मण रथ पर सवार हो कर तमसा नदी के तट पर पहुंचे। अगले दिन गोमती नदी पार कर वे सरयू नदी के तट पहुँचे, यहाँ अयोध्या की सीमा समाप्त होती थी। शाम को वे श्रृंगवेरपुर गांव पहुंचे और वहाँ उन्होंने निषादराज के अतिथि के रूप में विश्राम किया। अगले दिन सुमंत्र को समझाकर लौटा दिया और उन्होंने गंगा पार की। सुमंत्र ने राजा दशरथ को राम, सीता और लक्ष्मण के कुशल समाचार सुनाए। राम के वन गमन के शोक में छठे दिन राजा ने प्राण त्याग दिए। राजगद्दी खाली न रहें इसलिए भरत को तुरंत बुलाने के लिए एक घुड़सवार रवाना किया गया, और उसे राज्य की घटनाओं के बारे में मौन रहने का निर्देश दिया गया।
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