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1800-102-2727राम और लक्ष्मण महर्षि के साथ सरयू नदी के किनारे चल रहे थे। अंधेरा होने पर महर्षि ने रात वहीं बिताने की सोची । रात में महर्षि ने राजकुमारों को बल–अतिबल नामक विद्या सिखाई। सुबह यात्रा प्रारंभ की गई। महर्षि मार्ग में आने वाले आश्रमों, वन–वनस्पतियों आदि बारे में बताते हुए आगे बढ़ रहे थे। चलते हुए एक स्थान आया जहां गंगा और एक नदी का संगम हो रहा था। उस रात संगम पर बने एक आश्रम पर वे तीनों रुक गए। अगली सुबह गंगा नदी पार की , जिसके आगे ‘ताड़का’ नामक घना जंगल था। महर्षि ने उस राक्षणी के बारे में बताया जिसके नाम पर जंगल का नाम है और राम को उसे खत्म कर देने का आदेश दिया। तड़का जैसे ही प्रकट हुई, राम ने उस पर बाण चला कर उसका वध कर दिया। महर्षि ने खुश होकर राजकुमारों को गले लगा लिया और अनेकों नए तरह के अस्त्र–शस्त्र दिए।
अगले दिन प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हुए वे आश्रम पहुंचे। यज्ञ का अनुष्ठान शुरू हुआ। यज्ञ निर्विघ्न चल रहा था तभी अंतिम दिन सुबाहु और मारीच ने राक्षस दल के साथ हमला किया। मारीच बाण लगते ही मूर्छित हो गया। जब उसे होश आया तो वह दक्षिण दिशा में भाग गया। राम और लक्ष्मण ने राक्षस सेना को मार दिया और महर्षि का यज्ञ संपन्न हुआ। महर्षि राजकुमारों को मिथिला के महाराज जनक के अद्भुत शिव –धनुष दिखाने ले गए। महाराज जनक ने महर्षि का स्वागत कर दोनों राजकुमारों का परिचय पाया। तब राजा जनक ने अपनी प्रतिज्ञा बताते हुए कहा कि जो शिव–धनुष तोड़ देगा उसके साथ वह अपनी पुत्री सीता का विवाह करा देंगे। राम ने धनुष उठाकर उसकी प्रत्यंचा खींची तो वह टूट गया। राजा जनक ने राजा दशरथ को संदेश भेजा। राजा जनक के आग्रह से राम–सीता, लक्ष्मण–उर्मिला और उनके अनुज भाई की पुत्रियां मांडवी और श्रुतकीर्ति का विवाह भरत और शत्रुघ्न के संग उत्साह से हुआ।
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